INTRODUCTION :
रेंगने वाले जीव उन प्राणियों को कहा जाता है जो प्रायः पानी में रहते हैं और अपने पंजों की सहायता से तैरते हैं। ये जीव समुद्र, नदियाँ, झीलें और अन्य जलमार्गों में पाए जा सकते हैं। रेंगने वाले जीवों के शरीर में लगभग सभी प्राणियों की तरह चार अंग (दो पैर और दो हाथ) होते हैं, लेकिन उनके पंजे पानी में तैरने के लिए विशेष रूप से विकसित होते हैं।
ये जीव अपने आहार के लिए जल में मिलने वाले छोटे-छोटे जीवों को खाते हैं, जैसे की लार्वे, कीड़े, और छोटी मछलियाँ। कुछ रेंगने वाले जीव साहसिक बने रहकर बड़ी मछलियों को भी खाते हैं।
इन जीवों की कई प्रजातियाँ होती हैं, जैसे की मछलियाँ, केकड़े, समुद्री उफान, सीप, और अन्य जलचर प्राणियाँ। इनका आकार, रंग, और आदतें विभिन्न होती हैं, और ये जलमार्गों के अनुसार अपने आसपास के परिवेश में अवश्य कई तरीकों से अनुकूल होते हैं।
रेंगने वाले जीव समुद्री जीवों के लिए भी खास महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे समुद्री जीवों के लिए आहार के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं और समुद्री जीवन की संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
BRANCHES :
रेंगने वाले जीवों का वर्गीकरण निम्नलिखित शाखाओं में किया जा सकता है:
पृथक शाखा (Phylum Chordata): यह शाखा उन जीवों को सम्मिलित करती है जिनमें रेंगने के लिए संरचना (या स्पाइनल कॉर्ड) होती है। यह शाखा मानवों, पक्षियों, और पशुओं को सम्मिलित करती है।
स्त्रीजीवीय (Class Mammalia): इस शाखा में वे जीव होते हैं जिनके शरीर में स्तन होते हैं। यह शाखा जानवरों को सम्मिलित करती है जैसे कि गाय, भेड़, बिल्ली, और मनुष्य।
पक्षी शाखा (Class Aves): यह शाखा पक्षियों को सम्मिलित करती है, जो कि वायु में उड़ सकते हैं। पक्षी शाखा में चिड़ियाँ, मुर्गे, और बगुल जैसे प्रजातियाँ आती हैं।
अम्फिबियन शाखा (Class Amphibia): इस शाखा में वे जीव होते हैं जो कि पानी और जलीय क्षेत्रों में और सूखे के क्षेत्रों में दोनों में रह सकते हैं। यहां पर मेंढक, कांप, और सलामंडर जैसे जीव आते हैं।
पर्णपाद शाखा (Class Reptilia): इस शाखा में वे जीव होते हैं जिनमें पर्णपाद होते हैं। कई प्रकार के सरीसृप और सरीसृपाही इस शाखा में आते हैं।
मछली शाखा (Class Pisces): इस शाखा में वे जीव होते हैं जो कि पानी में रहते हैं और जानवरों के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। यहां पर रोहू, कार्प, और शार्क्स जैसी प्रजातियाँ आती हैं।
इन शाखाओं में रेंगने वाले जीवों का वर्गीकरण किया जाता है जो उनकी साझेदारी और सामान्य विशेषताओं के आधार पर होता है।
CONCEPTS:
रेंगने वाले जीवों के कई महत्वपूर्ण और रोचक अवधारणाएँ हैं। ये जीव पानी में रहने वाले हो सकते हैं, जैसे कि मछलियाँ, या जमीन पर रहने वाले, जैसे कि कछुआ और साँप। इनका एक मुख्य विशेषता यह है कि ये अपने आसपास के वातावरण के अनुसार अपने रंग और आवाज को बदल सकते हैं। यह उन्हें खाने के लिए बचाव और छुपाव के लिए मदद करता है।
रेंगने वाले जीवों के दो प्रमुख प्रकार हैं:
क्रिप्टिक रेंगन: इसमें जीव अपने आसपास के पर्यावरण से मिलता-जुलता रंग, आकार और आवाज अद्यतन करके अपने आपको छुपाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, बहुत से कैमॉफ्लॉज जानवर ऐसे होते हैं जो अपने पर्यावरण में मिलते हैं, और ऐसा महसूस होता है कि वे बिल्कुल अस्तित्व में नहीं हैं।
अपोस्टिक रेंगन: यह रेंगन एक संकेतिक चेतावनी के रूप में काम करता है। जीव अपनी आवाज, रंग या आकृति को बदलकर दुश्मनों को डराने या बचाव के लिए अपने आपको असुरक्षित या अदृश्य बना सकते हैं।
ये रंगन के अद्वितीय अवधारणाएँ जीवों को उनके पर्यावरण में अनुकूल बनाने में मदद करती हैं, जो उन्हें बचाव, शिकार या आकर्षण के लिए उपयोगी होती हैं।
रेंगने वाले जीवों का इतिहास (History of Reptiles)
रेंगने वाले जीव वनस्पति के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये पृथ्वी पर सबसे पुराने जीव हैं, जिनका इतिहास लाखों वर्ष पहले तक जाता है। रेंगने वाले जीवों का इतिहास अद्भुत और उत्कृष्ट है, जो उनके संपूर्ण विकास और उनके परिवार के संबंध में जानकारी प्रदान करता है।
प्राचीन काल:
रेंगने वाले जीवों का इतिहास बहुत प्राचीन है। इनकी प्रारंभिक प्रतिमाएँ पुराने पत्थरों और चट्टानों पर पाई जाती हैं, जिससे हमें यह ज्ञात होता है कि ये जीव संपूर्ण पृथ्वी के विकास का हिस्सा रहे हैं।
प्रागैतिहासिक काल:
प्रागैतिहासिक काल में, रेंगने वाले जीवों के प्राचीन रूप को और अधिक विकसित किया गया। इस समय के दौरान, इनकी जीवन प्रणालियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ और वे अपनी जीवन धारा के रूप में विकसित हुए।
मध्यकालीन काल:
मध्यकालीन काल में, रेंगने वाले जीवों की संख्या बढ़ गई और वे विभिन्न प्रान्तों में प्रचुरता से पाए जाने लगे। इस समय के दौरान, उनकी प्रजातियों में विविधता और विकास देखने को मिला।
आधुनिक काल:
आधुनिक काल में, रेंगने वाले जीवों का विकास और अध्ययन और भी गहरा हुआ। वैज्ञानिकों ने उनके विविधता, व्यवहार, और उनके पर्यावरण में रहने के तरीकों को गहराई से अध्ययन किया है।
रेंगने वाले जीवों का महत्व:
रेंगने वाले जीव पृथ्वी पर बहुत महत्वपूर्ण हैं। उनका इतिहास हमें यह बताता है कि पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ कैसे हुआ और वे आज भी हमारे पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
संरक्षण:
रेंगने वाले जीवों को संरक्षित करने के लिए कई संगठनों और सरकारी नीतियाँ हैं। उनके संरक्षण के लिए विभिन्न प्राकृतिक पारिस्थितिकीय, प्रदूषण नियंत्रण, और अन्य कदम उठाए जा रहे हैं।
समापन:
रेंगने वाले जीवों का इतिहास हमें हमारे पृथ्वी
सरीसृप जंतुओं
का
एक
आकर्षक
और विविध समूह है जो
दुनिया भर के विभिन्न
आवासों में पाया जाता
है।
**शारीरिक
विशेषताएं:**
* **त्वचा:**
सरीसृपों की त्वचा शुष्क,
खुरदरी और तराजू से
ढकी होती है। ये
तराजू κεराटिन नामक प्रोटीन से
बने होते हैं, जो
उन्हें नमी के नुकसान
से बचाते हैं और शरीर
के तापमान को नियंत्रित करने
में मदद करते हैं।
* **अंग:**
अधिकांश सरीसृपों के चार पैर
होते हैं, हालांकि कुछ
प्रजातियों ने अपने पैर
खो दिए हैं या
उनका रूपांतरण किया है। उनके
पैर मजबूत और पेशीदार होते
हैं जो उन्हें चलने,
दौड़ने, चढ़ने और तैरने में
मदद करते हैं।
* **सांस:**
सरीसृप फेफड़ों की मदद से
सांस लेते हैं। उनके
फेफड़े अपेक्षाकृत सरल होते हैं
और पक्षियों या स्तनधारियों के
फेफड़ों की तरह कुशल
नहीं होते हैं।
* **अंडे:**
सभी सरीसृप अंडे देते हैं।
उनके अंडे कठोर खोल
से ढके होते हैं
जो भ्रूण की रक्षा करते
हैं। अंडे आमतौर पर
पानी में या नम
वातावरण में रखे जाते
हैं।
**विशेष
रुप
से:**
* **शीतल-रक्त
वाले:**
सरीसृप शीतल-रक्त वाले
होते हैं, जिसका अर्थ
है कि उनका शरीर
का तापमान उनके परिवेश के
तापमान से मेल खाता
है। वे अपने शरीर
के तापमान को विनियमित करने
के लिए बाहरी स्रोतों,
जैसे सूर्य के प्रकाश या
गर्म चट्टानों पर निर्भर करते
हैं।
* **असंवेदनशील
अंग:**
सरीसृपों में बाहरी कान
नहीं होते हैं और
वे हवा में कंपन
के प्रति उतने संवेदनशील नहीं
होते हैं जितने कि
स्तनधारी होते हैं। हालांकि,
उनकी आंतरिक कान अच्छी तरह
से विकसित होती है और
वे जमीन के कंपन
को महसूस कर सकते हैं।
* *अलग
अलग
जीभ:*
कई सरीसृपों की जीभ लंबी
और कांटेदार होती है, जिसका
उपयोग शिकार को पकड़ने के
लिए किया जाता है।
उदाहरण के लिए, गिरगिट
अपनी चिपचिपी जीभ को तेजी
से बाहर निकालकर कीड़ों
को पकड़ लेती है।
* *विभिन्न
प्रकार
के
दांत:*
सरीसृपों के दांतों का
आकार और प्रकार उनके
आहार के अनुकूल होते
हैं। शाकाहारी सरीसृपों के पीसने वाले
दांत होते हैं, जबकि
मांसाहारी सरीसृपों के तेज और
नुकीले दांत होते हैं।
**कुछ
विशिष्ट
सरीसृप
और
उनकी
विशेषताएं:**
* **कछुआ:**
कछुओं के कठोर खोल
होते हैं जो उनके
शरीर की रक्षा करते
हैं। वे धीमी गति
से चलने वाले शाकाहारी
होते हैं और लंबे
समय तक पानी के
नीचे रह सकते हैं।
* **सांप:**
सांपों के पैर नहीं होते हैं
और वे अपने पेट
पर रेंगकर चलते हैं। वे
कुशल शिकारी होते हैं और
अपने शिकार को निगलने के
लिए अपने जबड़े को
अलग कर सकते हैं।
* **छिपकली:**
छिपकली आकार और रंग
में विविध हैं। वे फुर्तीले
होते हैं और तेजी
से दौड़ सकते हैं,
चढ़ सकते हैं और
तैर सकते हैं। कुछ
छिपकलियां अपने पूंछ को
छोड़ भी सकती हैं।
* **मगरमच्छ:**
मगरमच्छ बड़े, जलीय सरीसृप हैं
जो शक्तिशाली जबड़े और दांत रखते
हैं। वे कुशल शिकारी
होते हैं और पानी
में या जमीन पर
शिकार कर सकते हैं।
FACTS:
1. आवास: रेंगने वाले जीव ज्यादातर अधिकतर गर्म और नम स्थलों में पाए जाते हैं, जैसे कि वन, बाग, झीलें और नदियाँ।
2. शारीरिक विशेषताएँ: इनके पास लम्बे पंजे, तेज दौड़ने की क्षमता और अच्छी आंतरिक गर्मी रखने की क्षमता होती है।
3. आहार: रेंगने वाले जीव अक्सर मांसाहारी होते हैं, लेकिन कुछ पौधों के बीज और फल भी खाते हैं।
4. संतान: इनके बच्चे अक्सर अंडों से उत्पन्न होते हैं, जिन्हें वे अपनी जांघों के बीच रखकर गर्भवती मादा द्वारा गर्म किए जाते हैं।
5. जीवन शैली: रेंगने वाले जीव अक्सर रात के समय में सक्रिय होते हैं और दिन के समय आराम करते हैं।
6. प्राणी संचरण: कुछ रेंगने वाले जीव मुजफ्फरनगर एक नए स्थान पर पहुंचने से पहले लाखों किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं।
7. पर्यावरणीय महत्व: रेंगने वाले जीव अपने पर्यावरण में संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों को संतुलित करना।
8. जीवनकाल: बहुत से रेंगने वाले जीव लंबे समय तक जीवित रहते हैं, कुछ तकरीबन 15 से 20 वर्ष तक भी।
9. संरक्षण: रेंगने वाले जीव कई संरक्षण कार्यक्रमों के तहत संरक्षित किए जा रहे हैं ताकि उनकी संख्या और प्राकृतिक संतुलन बना रहे।
10. समृद्धि: कुछ प्रजातियाँ संरक्षित हैं, जबकि कुछ की संख्या घट रही है। इससे संभावना है कि इनके संरक्षण के लिए और कठिन प्रयास करने की आवश्यकता है।